भजन - Bhajan 10

पीड़ितों की पुकार

प्रार्थना गान 10 एक न्यायी व्यक्ति की विलाप है जो दुष्टों की अहंकार और क्रूरता को फलित होते हुए देखता है। प्रार्थनाकर्ता परमेश्वर से आवाज़ उठाता है, पूछता है कि वह दूर और छिपे क्यों हैं जबकि दुष्ट गरीब और वंचितों की उत्पीड़न करते हैं। गान का अंत एक पुकार है कि परमेश्वर हस्तक्षेप करें और दुष्टता का अंत करें।
1हे यहोवा तू क्यों दूर खड़ा रहता है?
2दुष्टों के अहंकार के कारण दीन पर अत्याचार होते है;
3क्योंकि दुष्ट अपनी अभिलाषा पर घमण्ड करता है,
4दुष्ट अपने अहंकार में परमेश्‍वर को नहीं खोजता;
5वह अपने मार्ग पर दृढ़ता से बना रहता है;
6वह अपने मन में कहता है कि “मैं कभी टलने का नहीं;
7उसका मुँह श्राप और छल और धमकियों से भरा है;
8वह गाँवों में घात में बैठा करता है,
9वह सिंह के समान झाड़ी में छिपकर घात में बैठाता है;
10लाचार लोगों को कुचला और पीटा जाता है,
11वह अपने मन में सोचता है, “परमेश्‍वर भूल गया,
12उठ, हे यहोवा; हे परमेश्‍वर, अपना हाथ बढ़ा और न्याय कर;
13परमेश्‍वर को दुष्ट क्यों तुच्छ जानता है,
14तूने देख लिया है, क्योंकि तू उत्पात और उत्पीड़न पर दृष्टि रखता है, ताकि उसका पलटा अपने हाथ में रखे;
15दुर्जन और दुष्ट की भूजा को तोड़ डाल;
16यहोवा अनन्तकाल के लिये महाराज है;
17हे यहोवा, तूने नम्र लोगों की अभिलाषा सुनी है;
18कि अनाथ और पिसे हुए का न्याय करे,