आयुब 5
आयुब 5

आयुब 5

बिल्दाद बोलता है

भीलदाद, जोब के एक और दोस्त, बोलते हैं, जोब के पाप का आरोप लगाते हैं।
1“पुकारकर देख; क्या कोई है जो तुझे उत्तर देगा?
2क्योंकि मूर्ख तो खेद करते-करते नाश हो जाता है,
3मैंने मूर्ख को जड़ पकड़ते देखा है;
4उसके बच्चे सुरक्षा से दूर हैं,
5उसके खेत की उपज भूखे लोग खा लेते हैं,
6क्योंकि विपत्ति धूल से उत्‍पन्‍न नहीं होती,
7परन्तु जैसे चिंगारियाँ ऊपर ही ऊपर को उड़ जाती हैं,
8“परन्तु मैं तो परमेश्‍वर ही को खोजता रहूँगा
9वह तो ऐसे बड़े काम करता है जिनकी थाह नहीं लगती,
10वही पृथ्वी के ऊपर वर्षा करता,
11इसी रीति वह नम्र लोगों को ऊँचे स्थान पर बैठाता है,
12वह तो धूर्त लोगों की कल्पनाएँ व्यर्थ कर देता है,
13वह बुद्धिमानों को उनकी धूर्तता ही में फँसाता है;
14उन पर दिन को अंधेरा छा जाता है, और
15परन्तु वह दरिद्रों को उनके वचनरुपी तलवार
16इसलिए कंगालों को आशा होती है, और
17“देख, क्या ही धन्य वह मनुष्य, जिसको
18क्योंकि वही घायल करता, और वही पट्टी भी बाँधता है;
19वह तुझे छः विपत्तियों से छुड़ाएगा; वरन्
20अकाल में वह तुझे मृत्यु से, और युद्ध में
21तू वचनरूपी कोड़े से बचा रहेगा और जब
22तू उजाड़ और अकाल के दिनों में हँसमुख रहेगा,
23वरन् मैदान के पत्थर भी तुझ से वाचा बाँधे रहेंगे,
24और तुझे निश्चय होगा, कि तेरा डेरा कुशल से है,
25तुझे यह भी निश्चित होगा, कि मेरे बहुत वंश होंगे,
26जैसे पूलियों का ढेर समय पर खलिहान में रखा जाता है,
27देख, हमने खोज खोजकर ऐसा ही पाया है;