
आयुब 7
नौकरी बिल्दद का जवाब देते हुए।
सारांश: जॉब बिल्दाद का जवाब देते हैं, अपनी रक्षा करते हैं और पूछते हैं कि भगवान क्यों दुःख को सहने की अनुमति देते हैं।
1“क्या मनुष्य को पृथ्वी पर कठिन सेवा करनी नहीं पड़ती?
2जैसा कोई दास छाया की अभिलाषा करे, या
3वैसा ही मैं अनर्थ के महीनों का स्वामी बनाया गया हूँ,
4जब मैं लेट जाता, तब कहता हूँ,
5मेरी देह कीड़ों और मिट्टी के ढेलों से ढकी हुई है;
6मेरे दिन जुलाहे की ढरकी से अधिक फुर्ती से चलनेवाले हैं
7“याद कर कि मेरा जीवन वायु ही है;
8जो मुझे अब देखता है उसे मैं फिर दिखाई न दूँगा;
9जैसे बादल छटकर लोप हो जाता है,
10वह अपने घर को फिर लौट न आएगा,
11“इसलिए मैं अपना मुँह बन्द न रखूँगा;
12क्या मैं समुद्र हूँ, या समुद्री अजगर हूँ,
13जब-जब मैं सोचता हूँ कि मुझे खाट पर शान्ति मिलेगी,
14तब-तब तू मुझे स्वप्नों से घबरा देता,
15यहाँ तक कि मेरा जी फांसी को,
16मुझे अपने जीवन से घृणा आती है;
17मनुष्य क्या है, कि तू उसे महत्व दे,
18और प्रति भोर को उसकी सुधि ले,
19तू कब तक मेरी ओर आँख लगाए रहेगा,
20हे मनुष्यों के ताकनेवाले, मैंने पाप तो किया होगा, तो मैंने तेरा क्या बिगाड़ा?
21और तू क्यों मेरा अपराध क्षमा नहीं करता?