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लोग हमारे पीछे ऐसे पड़े कि हम अपने नगर के चौकों में भी नहीं चल सके;
हमारी आँखें व्यर्थ ही सहायता की बाट जोहते-जोहते धुँधली पड़ गई हैं,
हमारे खदेड़नेवाले आकाश के उकाबों से भी अधिक वेग से चलते थे;