पूरा अध्याय पढ़ें
व्यभिचारी यह सोचकर कि कोई मुझ को देखने न पाए,
खूनी, पौ फटते ही उठकर दीन दरिद्र मनुष्य को घात करता,
वे अंधियारे के समय घरों में सेंध मारते और