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मैं कुटिल मनुष्यों की डाढ़ें तोड़ डालता,
दरिद्र लोगों का मैं पिता ठहरता था,
तब मैं सोचता था, 'मेरे दिन रेतकणों के समान अनगिनत होंगे,