
भजन - Bhajan 49
धन पर भरोसा करने की मूर्खता
प्रार्थना-गीत 49 एक काव्यात्मक स्मृति है जिसमें संपत्ति और धन हमें मौत से बचा नहीं सकते। प्रार्थना-गायक सबको, निम्न-वर्ग से धनी तक, जीवन की अनित्य स्वरूप को समझने और ध्यान देने की प्रेरित करते हैं। उन्होंने सुनने वालों को समझाया कि संबंधित वस्तुओं की बजाय भगवान पर विश्वास करें, क्योंकि धन सच में कभी अनंत सुरक्षा नहीं दे सकता।
1हे देश-देश के सब लोगों यह सुनो!
2क्या ऊँच, क्या नीच
3मेरे मुँह से बुद्धि की बातें निकलेंगी;
4मैं नीतिवचन की ओर अपना कान लगाऊँगा,
5विपत्ति के दिनों में मैं क्यों डरूँ जब अधर्म मुझे आ घेरे?
6जो अपनी सम्पत्ति पर भरोसा रखते,
7उनमें से कोई अपने भाई को किसी भाँति
8क्योंकि उनके प्राण की छुड़ौती भारी है
9कोई ऐसा नहीं जो सदैव जीवित रहे,
10क्योंकि देखने में आता है कि बुद्धिमान भी मरते हैं,
11वे मन ही मन यह सोचते हैं, कि उनका घर
12परन्तु मनुष्य प्रतिष्ठा पाकर भी स्थिर नहीं रहता,
13उनकी यह चाल उनकी मूर्खता है,
14वे अधोलोक की मानो भेड़ों का झुण्ड ठहराए गए हैं;
15परन्तु परमेश्वर मेरे प्राण को अधोलोक के
16जब कोई धनी हो जाए और उसके घर का
17क्योंकि वह मर कर कुछ भी साथ न ले जाएगा;
18चाहे वह जीते जी अपने आप को धन्य कहता रहे।
19तो भी वह अपने पुरखाओं के समाज में मिलाया जाएगा,
20मनुष्य चाहे प्रतिष्ठित भी हों परन्तु यदि वे