भजन - Bhajan 65
भजन - Bhajan 65

भजन - Bhajan 65

भगवान की प्रशंसा और कृतज्ञता

भागवत गीता 65 की सारांश: प्रार्थना 65 ईश्वर के प्रति एक गहरी कृतज्ञता और आश्चर्य का अभिव्यक्ति करती है जैसे कि ज़मीन का निर्माता और पोषक। कवि प्राकृतिक चमत्कारों पर आश्चर्य करते हैं, जैसे पहाड़ और समुद्र, और सभी जीवित प्राणियों के लिए भगवान की परिपूर्ण प्रावधान के गाने का जवाब देते हैं। प्रार्थना भगवान के अधिरंगी आशीर्वादों की घोषणा के साथ समाप्त होती है।
1हे परमेश्‍वर, सिय्योन में स्तुति तेरी बाट जोहती है;
2हे प्रार्थना के सुननेवाले!
3अधर्म के काम मुझ पर प्रबल हुए हैं;
4क्या ही धन्य है वह, जिसको तू चुनकर अपने समीप आने देता है,
5हे हमारे उद्धारकर्ता परमेश्‍वर,
6तू जो पराक्रम का फेंटा कसे हुए,
7तू जो समुद्र का महाशब्द, उसकी तरंगों का महाशब्द,
8इसलिए दूर-दूर देशों के रहनेवाले तेरे चिन्ह देखकर डर गए हैं;
भजन - Bhajan 65:8 - इसलिए दूर-दूर देशों के रहनेवाले तेरे चिन्ह देखकर डर गए हैं;
भजन - Bhajan 65:8 - इसलिए दूर-दूर देशों के रहनेवाले तेरे चिन्ह देखकर डर गए हैं;
9तू भूमि की सुधि लेकर उसको सींचता है,
10तू रेघारियों को भली भाँति सींचता है,
11तेरी भलाइयों से, तू वर्ष को मुकुट पहनता है;
12वे जंगल की चराइयों में हरियाली फूट पड़ती हैं;
13चराइयाँ भेड़-बकरियों से भरी हुई हैं;