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जैसे लोग बरसात की, वैसे ही मेरी भी बाट देखते थे;
जब मैं बोल चुकता था, तब वे और कुछ न बोलते थे,
जब उनको कुछ आशा न रहती थी तब मैं हंसकर उनको प्रसन्न करता था;