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जब उनको कुछ आशा न रहती थी तब मैं हंसकर उनको प्रसन्न करता था;
जैसे लोग बरसात की, वैसे ही मेरी भी बाट देखते थे;
मैं उनका मार्ग चुन लेता, और उनमें मुख्य ठहरकर बैठा करता था,