
आयुब 31
नौकरी एलिफाज का जवाब देता है
जॉब इलिफाज के जवाब में खुद को बचाते हैं और अपने विश्वास का अभिव्यक्ति करते हैं जो एक न्यायसंगत भगवान में होता है।
1“मैंने अपनी आँखों के विषय वाचा बाँधी है,
2क्योंकि परमेश्वर स्वर्ग से कौन सा अंश
3क्या वह कुटिल मनुष्यों के लिये विपत्ति
4क्या वह मेरी गति नहीं देखता
5यदि मैं व्यर्थ चाल चलता हूँ,
6(तो मैं धर्म के तराजू में तौला जाऊँ,
7यदि मेरे पग मार्ग से बहक गए हों,
8तो मैं बीज बोऊँ, परन्तु दूसरा खाए;
9“यदि मेरा हृदय किसी स्त्री पर मोहित हो गया है,
10तो मेरी स्त्री दूसरे के लिये पीसे,
11क्योंकि वह तो महापाप होता;
12क्योंकि वह ऐसी आग है जो जलाकर भस्म कर देती है,
13“जब मेरे दास व दासी ने मुझसे झगड़ा किया,
14तो जब परमेश्वर उठ खड़ा होगा, तब मैं क्या करूँगा?
15क्या वह उसका बनानेवाला नहीं जिस ने मुझे गर्भ में बनाया?
16“यदि मैंने कंगालों की इच्छा पूरी न की हो,
17या मैंने अपना टुकड़ा अकेला खाया हो,
18(परन्तु वह मेरे लड़कपन ही से मेरे साथ इस प्रकार पला जिस प्रकार पिता के साथ,
19यदि मैंने किसी को वस्त्रहीन मरते हुए देखा,
20और उसको अपनी भेड़ों की ऊन के कपड़े न दिए हों,
21या यदि मैंने फाटक में अपने सहायक देखकर
22तो मेरी बाँह कंधे से उखड़कर गिर पड़े,
23क्योंकि परमेश्वर के प्रताप के कारण मैं ऐसा नहीं कर सकता था,
24“यदि मैंने सोने का भरोसा किया होता,
25या अपने बहुत से धन
26या सूर्य को चमकते
27मैं मन ही मन मोहित हो गया होता,
28तो यह भी न्यायियों से दण्ड पाने के योग्य अधर्म का काम होता;
29“यदि मैं अपने बैरी के नाश से आनन्दित होता,
30(परन्तु मैंने न तो उसको श्राप देते हुए,
31यदि मेरे डेरे के रहनेवालों ने यह न कहा होता,
32(परदेशी को सड़क पर टिकना न पड़ता था;
33यदि मैंने आदम के समान अपना अपराध छिपाकर
34इस कारण कि मैं बड़ी भीड़ से भय खाता था,
35भला होता कि मेरा कोई सुननेवाला होता!
36निश्चय मैं उसको अपने कंधे पर उठाए फिरता;
37मैं उसको अपने पग-पग का हिसाब देता;
38“यदि मेरी भूमि मेरे विरुद्ध दुहाई देती हो,
39यदि मैंने अपनी भूमि की उपज बिना मजदूरी दिए खाई,
40तो गेहूँ के बदले झड़बेरी,