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हर एक अपनी ही हित की नहीं, वरन् दूसरों के हित की भी चिन्ता करे।
स्वार्थ या मिथ्यागर्व के लिये कुछ न करो, पर दीनता से एक दूसरे को अपने से अच्छा समझो।
जैसा मसीह यीशु का स्वभाव था वैसा ही तुम्हारा भी स्वभाव हो;